कुछ अजब
कुछ गजबसन्नाटा सा था
चंद रातें
कभी सोतीं
कभी जागतीं
खुली आँखों से कभी
कभी मूंदकर आँखें
मैं देखता सा था
क्या था
क्यों था
कुछ तो था
जिसने मुझे
बेचैन किया था
थी अजब सी
कुछ बेचैनी
क्या थी
क्यों थी
यह सवाल बन
मेरे जहन में
घूमता सा था
चंद रातें
बेचैनी, सवाल
और मैं !
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