Friday, January 28, 2011

'खुदा' का दीदार !

उसने सजदे-पे-सजदा,
और
मैंने गुनाह-पे-गुनाह किये थे
क़यामत सा तूफां था,
मेरे
गुनाहों से कश्ती डगमगा
और
उसके सजदे से संभल रही थी
आज इम्तिहां की घड़ी थी
उसके सजदे और मेरे गुनाह
'खुदा' के सामने थे
तूफां था, कश्ती थी
किसे उठाना, किसे छोड़ना
जद्दो जहद की घड़ी थी
घंटों तूफां चलता रहा
मौत की घड़ी में भी
वो सलामती के लिए सजदा
और मैं जां के लिए
खुद को कोसता रहा
उसके सजदे को सुन ले 'खुदा'
यही सोच मेरे हाथ भी
खुद व् खुद सजदा करने लगे
'खुदा' ने रहमत बरती
तूफां ठहर गया
मौत की घड़ी में आज
मैं भी सजदा सीख गया
लम्बी उम्र में सीख पाया था
आज क्षण भर में तूफां मुझे
सिर्फ सजदा और सजदे का असर
वरन 'खुदा' का दीदार भी करा गया !

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