Tuesday, January 4, 2011

सच ! ये लोकतंत्र है !!

बेईमानी या इमानदारी ! वाह
बेईमानी की उम्मीद
कितनी, सिर्फ उतनी ही
जितना बेईमान का दायरा है
क्यों, क्योंकि, दायरे से बाहर
वो भी बेईमानी में
मुश्किल, कठिन, असंभव सा है !

किन्तु इमानदारी का सवाल
तो फिर सोचना ही क्या
कोई हद, मर्यादा, दायरा
शायद ! नहीं, क्यों
क्योंकि सवाल इमानदारी का है
इमानदारी का सवाल 'दिल'
और बेईमानी का 'मन' से है !

एक सरकारी कुर्सी पर
बैठा अफसर ! बेईमानी में
कुर्सी के दायरे को
बे-खौफ छू रहा है
और जब सवाल इमानदारी
तो 'दिल' को टटोलने
के लिए भी तैयार नहीं !

नेता, मंत्री ! उफ्फ
कोई हद नहीं, क्यों
इन्हें इमानदारी की फुर्सत
चर्चा ! कोई मतलब नहीं
सिर्फ बेईमानी ! एक मन्त्र
वाह ! क्या नज़ारे हैं
सच ! ये लोकतंत्र है !!

2 comments:

Rahul Singh said...

मंत्र और भी होते हैं, अच्‍छे गुरु के तलाश में देर हमारी ओर से होती है.

Minakshi Pant said...

आजकल देश मै ईमानदारी रह ही कहाँ गई दोस्त उपर से नीचे तक भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार तो हैं !
बहुत खुबसूरत कविता शब्दों का खुबसूरत ताना बाना !