Friday, January 28, 2011

न जाने, कौन जाने, कब तलक, चलना है मुझको ...

जाने, कौन जाने
कब तलक
चलना है मुझको
सफ़र है, रास्ते हैं
और मेरे पग
इरादों संग
निरंतर बढ़ रहे हैं !

मिलेंगी मंजिलें
रस्ते बड़े हैं
थकेंगे कभी
ये पग मेरे हैं
मेरे जज्बे, हौसले
पगों
संग
होड़ में आगे खड़े हैं !

सोचो तुम
थक कर, कहीं
मैं ठहर जाऊं
ये पग
जज्बे
इरादे
हौसले
मैंने गढ़े हैं !

चलो चलते रहो
बढ़ते रहो तुम
संग संग मेरे
पीछे रास्ते मैंने गढ़े हैं
सफ़र थोड़ा बचा है
चलो चलते रहें
सुकूं की सांस, लेंगे हम
पहुँच कर, मंजिलों पर !!

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