वो खामोशी में गुस्सा जता रहे थे
बात दिल की दिल में छिपा रहे थे !
हमने जब पूंछा सबब उनसे
तो रूठे-रूठे ही मुस्कुरा रहे थे !
हम इतने नादां थे, फिर भी
उनके दर को खट-खटा रहे थे !
रोज दे देकर तसल्ली दिल को
हम खुद को आजमा रहे थे !
कैसे टूटेगी अब ये उलझन मेरी
यही सोच सोच के घवरा रहे थे !
आस के मोहब्बती चिरागों को
बार बार बुझने से बचा रहे थे !!
बात दिल की दिल में छिपा रहे थे !
हमने जब पूंछा सबब उनसे
तो रूठे-रूठे ही मुस्कुरा रहे थे !
हम इतने नादां थे, फिर भी
उनके दर को खट-खटा रहे थे !
रोज दे देकर तसल्ली दिल को
हम खुद को आजमा रहे थे !
कैसे टूटेगी अब ये उलझन मेरी
यही सोच सोच के घवरा रहे थे !
आस के मोहब्बती चिरागों को
बार बार बुझने से बचा रहे थे !!
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