दो मित्र शाम - ७.३० बजे अचानक मिलने पर ...
राम - अरे यार संतोष कैसा है, आज बहुत दिन बाद , बहुत खुशी हुई मिलकर, और सुना क्या नया चल रहा है !
संतोष - कुछ ख़ास नहीं, तुझे तो पता ही है कि - स्कूल में पढ़ाने लगा हूँ, उसके अलावा कुछ ट्यूशन वगैरह कर लेता हूँ, बस और कुछ नहीं, तू सुना कैसी चल रही है तेरी नौकरी ... खूब माल कमा रहा होगा !
राम - माल कमाने जैसी कोई बात नहीं है, तू तो जानता है अपुन इस लफड़े से दूर रहता हूँ, और रही नौकरी की बात - नौकर तो नौकर ही होता है, उसकी क्या मर्जी और क्या वह मर्जी का मालिक ... खैर छोड़, सुना कल की क्या तैयारी चल रही है !
संतोष - कल बोले तो ... क्या मतलब है तेरा !
राम - अरे यार ... कल 'शिक्षक दिवस' है, और तू जाने-मानें स्कूल का शिक्षक है यार ... इसलिए पूंछ लिया ... मेरा मतलब 'शिक्षक दिवस' की तैयारी से है !
संतोष - अरे यार ... तू भी ... तूने तो मुझे चौंका ही दिया था ... ठीक है 'शिक्षक' हूँ, अब इसका ये मतलब तो नहीं कि कुछ तैयारी-सैयारी करनी पड़ेगी ... अपने को क्या करना है, कुछ भी तो नहीं, जो कुछ भी करना है स्कूल मैनेजमेंट को और बच्चों को करना है ... तू भी यार !
राम - नहीं यार ... फिर भी कुछ तो ... 'शिक्षक दिवस' अपने देश का एक पूज्यनीय पर्व है और तू ओवर आल एक टीचर है आई मीन 'गुरु' है ! ... यार हम राजेन्द्र प्रसाद, राधा कृष्णन, लाल बहादुर शास्त्री, मदर टेरेसा, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, सांई बाबा, जैसे महान व एतिहासिक पुरुष नहीं बन सकते, पर क्या उनके बताये रास्ते पर भी नहीं चल सकते ... ठीक है जैसी तेरी मर्जी ... पर अपुन ने तो ये डिसाइड किया हुआ है कि - कल गरीब बस्तियों में जा-जा कर बच्चों को उनके महत्त्व की शिक्षाप्रद व ज्ञानवर्धक किताबें, चार्ट, नक़्शे, पोस्टर, स्लेट-पेन्सिल, इत्यादि बाँट - बाँट कर 'शिक्षक दिवस' मनाएंगे ... !
( कुछ देर सन्नाटा-सा पसरा रहा ... फिर राम अपने मित्र संतोष को मिलते हैं कहते हुए ... 'जय हिंद' कह कर चला गया )
राम - अरे यार संतोष कैसा है, आज बहुत दिन बाद , बहुत खुशी हुई मिलकर, और सुना क्या नया चल रहा है !
संतोष - कुछ ख़ास नहीं, तुझे तो पता ही है कि - स्कूल में पढ़ाने लगा हूँ, उसके अलावा कुछ ट्यूशन वगैरह कर लेता हूँ, बस और कुछ नहीं, तू सुना कैसी चल रही है तेरी नौकरी ... खूब माल कमा रहा होगा !
राम - माल कमाने जैसी कोई बात नहीं है, तू तो जानता है अपुन इस लफड़े से दूर रहता हूँ, और रही नौकरी की बात - नौकर तो नौकर ही होता है, उसकी क्या मर्जी और क्या वह मर्जी का मालिक ... खैर छोड़, सुना कल की क्या तैयारी चल रही है !
संतोष - कल बोले तो ... क्या मतलब है तेरा !
राम - अरे यार ... कल 'शिक्षक दिवस' है, और तू जाने-मानें स्कूल का शिक्षक है यार ... इसलिए पूंछ लिया ... मेरा मतलब 'शिक्षक दिवस' की तैयारी से है !
संतोष - अरे यार ... तू भी ... तूने तो मुझे चौंका ही दिया था ... ठीक है 'शिक्षक' हूँ, अब इसका ये मतलब तो नहीं कि कुछ तैयारी-सैयारी करनी पड़ेगी ... अपने को क्या करना है, कुछ भी तो नहीं, जो कुछ भी करना है स्कूल मैनेजमेंट को और बच्चों को करना है ... तू भी यार !
राम - नहीं यार ... फिर भी कुछ तो ... 'शिक्षक दिवस' अपने देश का एक पूज्यनीय पर्व है और तू ओवर आल एक टीचर है आई मीन 'गुरु' है ! ... यार हम राजेन्द्र प्रसाद, राधा कृष्णन, लाल बहादुर शास्त्री, मदर टेरेसा, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, सांई बाबा, जैसे महान व एतिहासिक पुरुष नहीं बन सकते, पर क्या उनके बताये रास्ते पर भी नहीं चल सकते ... ठीक है जैसी तेरी मर्जी ... पर अपुन ने तो ये डिसाइड किया हुआ है कि - कल गरीब बस्तियों में जा-जा कर बच्चों को उनके महत्त्व की शिक्षाप्रद व ज्ञानवर्धक किताबें, चार्ट, नक़्शे, पोस्टर, स्लेट-पेन्सिल, इत्यादि बाँट - बाँट कर 'शिक्षक दिवस' मनाएंगे ... !
( कुछ देर सन्नाटा-सा पसरा रहा ... फिर राम अपने मित्र संतोष को मिलते हैं कहते हुए ... 'जय हिंद' कह कर चला गया )
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