देश के नामी-गिरामी मीडिया हाऊस के एक एयरकंडीशन आफिस रूम में ...
आशुतोष - आओ, स्मिता आओ ... बैठो ... कैसी हो !
स्मिता - जी, ठीक हूँ, आपके रहते किस बात की चिंता !
आशुतोष - हाँ, वो तो है ... आज क्या मिशन रहा !
स्मिता - कुछ ख़ास नहीं, आज 'टीचर्स डे' था उसी पर एक स्टोरी लगाई है !
आशुतोष - बहुत सुन्दर ... 'टीचर्स डे' ... वेरी गुड ... अरे स्मिता, तुम्हारा भी तो कोई 'गुरु' होगा ... कौन है !
स्मिता - हाँ, जरुर है ... सच बोलूँ ... मेरे तो आप ही 'गुरु' हैं, मैंने आज तक जो कुछ भी सीखा-समझा है वह सब आप से ही सीखा है, आज लगभग ८-९ साल हो गए इस लाइन में काम करते हुए, जब कभी कुछ उलझन लगी मन में, आपके काम करने के तौर-तरीके को याद करते हुए उलझन को सुलझाया ... सच कहूं - आपकी सोच, क्रियाशीलता, फुर्ती, नजरिया, और लगातार घंटों काम करने की आपकी आदत से मैंने बहुत कुछ सीखा है ... आप मेरे 'गुरु' हैं, इसे स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं है !
आशुतोष - क्या बात है ... लो आज तक मुझे ही पता नहीं था कि कोई मेरा 'शिष्य' भी है, आई मीन मुझसे कुछ सीख रहा है ... वो भी बिना 'गुरु दक्षिणा' के ... !
स्मिता - इसमें आश्चर्य क्यों ... वो भी 'गुरु दक्षिणा' के लिए ... मांगिये, क्या मांगते हैं आप 'गुरु दक्षिणा' में ... आप जो मांगेगे, वो आपको मिलेगा ... ये मेरा वचन है, मेरी जुबान नहीं पलटेगी ... मैं यह मान लूंगी कि - आज मेरी अग्नि परीक्षा है और मुझे एक 'आदर्श शिष्य' के नाते इस परीक्षा को पास करना है ... आप "जो चाहे" मांग सकते हैं अपनी इस 'शिष्या' से !
आशुतोष - तुमने इतना कह दिया ... बस यही मेरी 'गुरु दक्षिणा' है ... मुझे गर्व है तुम पर ... और अपने आप पर भी कि मेरे पास तुम्हारे जैसी 'शिष्या' है !
स्मिता - सर, आप बात को टालने की कोशिश कर रहे हैं ... अभी तक मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अप्रत्यक्ष तौर पर सीखा है, हो सकता है प्रत्यक्ष रूप में भी कुछ सीखने का मौक़ा मिल जाए ... आप ये समझ लीजिये कि - आज आपके माँगने और मेरे देने की परीक्षा है 'गुरु दक्षिणा' ... बताइये, क्या चाहते हैं !
आशुतोष - स्मिता, तुम भी बहुत जिद्दी हो मेरी तरह ... जो ठान लेती हो तो बस ठान लेती हो ... जाने दो, फिर कभी देखेंगे ... !
स्मिता - सर, मैंने कहा न, आज हम दोनों की परीक्षा है ... अब तो आपको मांगना ही पडेगा ... !
आशुतोष - जाने दो ... हो सकता है मैं कोई ऐसी-वैसी "चीज" मांग लूं जो तुम दे न पाओ !
स्मिता - मैंने कहा न सर, यह भी एक परीक्षा है ... या तो आप, या तो मैं, या फिर हम दोनों ही पास होंगे !
आशुतोष - ऐसा है क्या ... ( कुछ देर सन्नाटे का माहौल रहा फिर आशुतोष की जुबान से धीरे धीरे कुछ निकला ) ... ऐसा है तो सुनो ... यदि तुम कह रही हो कि यह परीक्षा है तो समझ लो परीक्षा ही है ... सुनो - यह एक पहेली है, मैं इसमें कुछ मांग रहा हूँ और तुमको समझना है कि मैं क्या मांग रहा हूँ ... सुनो, गौर से सुनो - "तुम मुझे कोई ऐसी "चीज" दो, जो तुम मुझे दे भी दो, मुझे मिल भी जाए, और वह "चीज" तुम्हारी ही बने रहे !"
( आफिस में सन्नाटा पसर गया ... क्या पहेली है ... क्या माँगा है ... एक 'गुरु' ने एक 'शिष्या' से ... लगभग ४०-४५ मिनट सन्नाटा पसरा रहा ... दोनों ओर से खामोशी बिखरी रही ... इस बीच दोनों ने थर्मस से निकाल निकाल कर दो-दो कप ब्लेक-टी भी पी ली ... फिर स्मिता ने आशुतोष की आँखों में आँखे डालते हुए चुप्पी तोडी ... )
स्मिता - सर, मानना पडेगा आपको, आप सचमुच महान हैं, मैं जितना सोचती थी आप उससे भी कहीं ज्यादा बुद्धिमान हैं ... मैं आपकी बुद्धिमता को 'सैल्यूट' करती हूँ ... यह सिर्फ एक पहेली नहीं वरन आपकी बुद्धिमता की एक झलक है ... आपको जो गर्व मुझे एक 'शिष्या' के रूप में पाकर महसूस हुआ है, निसंदेह आपको साक्षात 'गुरु' के रूप में पाकर तथा आपको 'गुरु दक्षिणा' देकर मुझे भी उतना ही गर्व होगा ... यहाँ 'ताज', 'ओबेराय' या और कहीं समय खराब करने से बेहतर होगा कि - 'गुरु-शिष्य' दोनों 'गुरु दक्षिणा' के लिए २-३ दिनों के लिए सिंगापुर, न्यूजीलैंड, स्वीटजरलैंड या कहीं और ... जहां आप चाहो ... !
( बात पूरी होते होते, कहते कहते, सुनते सुनते ... दोनों अपनी अपनी कुर्सी से उठकर 'टीचर्स डे' की बधाई देते हुए एक-दूसरे के गले लग गए ! )
आशुतोष - आओ, स्मिता आओ ... बैठो ... कैसी हो !
स्मिता - जी, ठीक हूँ, आपके रहते किस बात की चिंता !
आशुतोष - हाँ, वो तो है ... आज क्या मिशन रहा !
स्मिता - कुछ ख़ास नहीं, आज 'टीचर्स डे' था उसी पर एक स्टोरी लगाई है !
आशुतोष - बहुत सुन्दर ... 'टीचर्स डे' ... वेरी गुड ... अरे स्मिता, तुम्हारा भी तो कोई 'गुरु' होगा ... कौन है !
स्मिता - हाँ, जरुर है ... सच बोलूँ ... मेरे तो आप ही 'गुरु' हैं, मैंने आज तक जो कुछ भी सीखा-समझा है वह सब आप से ही सीखा है, आज लगभग ८-९ साल हो गए इस लाइन में काम करते हुए, जब कभी कुछ उलझन लगी मन में, आपके काम करने के तौर-तरीके को याद करते हुए उलझन को सुलझाया ... सच कहूं - आपकी सोच, क्रियाशीलता, फुर्ती, नजरिया, और लगातार घंटों काम करने की आपकी आदत से मैंने बहुत कुछ सीखा है ... आप मेरे 'गुरु' हैं, इसे स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं है !
आशुतोष - क्या बात है ... लो आज तक मुझे ही पता नहीं था कि कोई मेरा 'शिष्य' भी है, आई मीन मुझसे कुछ सीख रहा है ... वो भी बिना 'गुरु दक्षिणा' के ... !
स्मिता - इसमें आश्चर्य क्यों ... वो भी 'गुरु दक्षिणा' के लिए ... मांगिये, क्या मांगते हैं आप 'गुरु दक्षिणा' में ... आप जो मांगेगे, वो आपको मिलेगा ... ये मेरा वचन है, मेरी जुबान नहीं पलटेगी ... मैं यह मान लूंगी कि - आज मेरी अग्नि परीक्षा है और मुझे एक 'आदर्श शिष्य' के नाते इस परीक्षा को पास करना है ... आप "जो चाहे" मांग सकते हैं अपनी इस 'शिष्या' से !
आशुतोष - तुमने इतना कह दिया ... बस यही मेरी 'गुरु दक्षिणा' है ... मुझे गर्व है तुम पर ... और अपने आप पर भी कि मेरे पास तुम्हारे जैसी 'शिष्या' है !
स्मिता - सर, आप बात को टालने की कोशिश कर रहे हैं ... अभी तक मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अप्रत्यक्ष तौर पर सीखा है, हो सकता है प्रत्यक्ष रूप में भी कुछ सीखने का मौक़ा मिल जाए ... आप ये समझ लीजिये कि - आज आपके माँगने और मेरे देने की परीक्षा है 'गुरु दक्षिणा' ... बताइये, क्या चाहते हैं !
आशुतोष - स्मिता, तुम भी बहुत जिद्दी हो मेरी तरह ... जो ठान लेती हो तो बस ठान लेती हो ... जाने दो, फिर कभी देखेंगे ... !
स्मिता - सर, मैंने कहा न, आज हम दोनों की परीक्षा है ... अब तो आपको मांगना ही पडेगा ... !
आशुतोष - जाने दो ... हो सकता है मैं कोई ऐसी-वैसी "चीज" मांग लूं जो तुम दे न पाओ !
स्मिता - मैंने कहा न सर, यह भी एक परीक्षा है ... या तो आप, या तो मैं, या फिर हम दोनों ही पास होंगे !
आशुतोष - ऐसा है क्या ... ( कुछ देर सन्नाटे का माहौल रहा फिर आशुतोष की जुबान से धीरे धीरे कुछ निकला ) ... ऐसा है तो सुनो ... यदि तुम कह रही हो कि यह परीक्षा है तो समझ लो परीक्षा ही है ... सुनो - यह एक पहेली है, मैं इसमें कुछ मांग रहा हूँ और तुमको समझना है कि मैं क्या मांग रहा हूँ ... सुनो, गौर से सुनो - "तुम मुझे कोई ऐसी "चीज" दो, जो तुम मुझे दे भी दो, मुझे मिल भी जाए, और वह "चीज" तुम्हारी ही बने रहे !"
( आफिस में सन्नाटा पसर गया ... क्या पहेली है ... क्या माँगा है ... एक 'गुरु' ने एक 'शिष्या' से ... लगभग ४०-४५ मिनट सन्नाटा पसरा रहा ... दोनों ओर से खामोशी बिखरी रही ... इस बीच दोनों ने थर्मस से निकाल निकाल कर दो-दो कप ब्लेक-टी भी पी ली ... फिर स्मिता ने आशुतोष की आँखों में आँखे डालते हुए चुप्पी तोडी ... )
स्मिता - सर, मानना पडेगा आपको, आप सचमुच महान हैं, मैं जितना सोचती थी आप उससे भी कहीं ज्यादा बुद्धिमान हैं ... मैं आपकी बुद्धिमता को 'सैल्यूट' करती हूँ ... यह सिर्फ एक पहेली नहीं वरन आपकी बुद्धिमता की एक झलक है ... आपको जो गर्व मुझे एक 'शिष्या' के रूप में पाकर महसूस हुआ है, निसंदेह आपको साक्षात 'गुरु' के रूप में पाकर तथा आपको 'गुरु दक्षिणा' देकर मुझे भी उतना ही गर्व होगा ... यहाँ 'ताज', 'ओबेराय' या और कहीं समय खराब करने से बेहतर होगा कि - 'गुरु-शिष्य' दोनों 'गुरु दक्षिणा' के लिए २-३ दिनों के लिए सिंगापुर, न्यूजीलैंड, स्वीटजरलैंड या कहीं और ... जहां आप चाहो ... !
( बात पूरी होते होते, कहते कहते, सुनते सुनते ... दोनों अपनी अपनी कुर्सी से उठकर 'टीचर्स डे' की बधाई देते हुए एक-दूसरे के गले लग गए ! )
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