Thursday, September 15, 2011

... मरने को तो हम कब के मर चुके हैं !

देर से सही, बात दिल की, जुबां पे आई तो सही
क्या वजह थी शायरी की, समझ आई तो सही !
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आज ये सफ़र, मुंबई लोकल सा लगे है
उतरते-चढ़ते, धक्के-पे-धक्का लगे है !
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हम ! शायद कुछ भी तो नहीं हैं
सिर्फ एक मुसाफिर के सिवा !!
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सच ! बात कड़वी लगे, तो लगने दो
कम से कम आईना तो झूठ न बोले !
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'खुदा' जाने क्यों लोग खुद को तीस मार खां समझते हैं
आलोचना में क्या रखा है, दम है तो समीक्षा की जाए !
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बा-अदब जो कह दिया, स्वीकार है
कौन जाने फन बड़ा, या बड़ा फनकार है !
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गर फर्क होता भी तो हम समझते कैसे
जब भी देखा, अदाएं कातिलाना रहीं !
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हम आईने बदल बदल के खुदी को देखते फिरे
उफ़ ! कोई भी आईना, चेहरा बदल नहीं पाया !
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कल तक जो खामोश खड़े थे, हांथ बांध कर हांथों में
आज उन हांथों का जोश देख लो, हर जलती मशालों में ! 
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किताबों में नहीं था, सितारों में नहीं था
मैं कुछ तो था मगर, कुछ भी नहीं था !

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कभी चमगादड़, कभी गीदड़, कभी डोगी होता है
ये किस नस्ल का है, घड़ी-घड़ी सूरत बदलता है !
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जो खाए थे, वो अंगूर बहुत मीठे निकले
जो चखे नहीं, 'खुदा' जाने वो कैसे खटटे निकले !
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तुम चंद घंटों में ही नींद-नींद चिल्ला रहे हो
और एक हम हैं, जो सदियों से जागे हुए हैं !
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क्या लिखूं, क्या नहीं, चहूँ ओर शोर है
झूठ की मंशा है जीत जाए, पुरजोर है !
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जन्नती हूरों की उमर होगी लाख बरस लेकिन
ये न भूलें कि - जिस्म सोलह सा करारा होगा !
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रोज खतों को देते-लेते, मुझको उससे प्यार हुआ है
अब खतों को देख-देख के, हम दोनों हंस लेते हैं !!
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रश्म-ओ-रिवाज अब तुम इतने भी न कड़े करो यारो
मोहब्बत हमारी, तुम तक जाते जाते न दम तोड़ दे !
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बिना देखे, हम ये कैसे फैसला कर लें
जन्नत है, जन्नत की हकीकत देखें !
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कभी आशाएं, कभी अभिनव प्रयोग, हमें ज़िंदा रखे हैं 'उदय'
वरना मरने को तो हम कब के मर चुके हैं !

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