Monday, January 10, 2011

यारों से, रकीबों के रिवाज अच्छे हैं !

पैसा बडा है, ईमान बदल दे
पर इतना भी नहीं, कुदरत को बदल दे !
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नही है खौफ बस्ती में, तेरी खुबसूरती का
खौफ है तो, तेरी कातिल अदाएँ हैं ।
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बडा मुश्किल है जीना, यारों के चलन में
यारों से, रकीबों के रिवाज अच्छे हैं ।
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कौन कहता है हिन्दू-मुस्लिम में फर्क है
नहीं है फर्क जन्मों में – नहीं है फर्क रक्तों में
फर्क है तो तेरी आँखों – तेरी बातों में फर्क है
न हिन्दू भी अलग है, न मुस्लिम भी अलग है।
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मिटटी के खिलौने हैं हम सब, मिटटी में ही रचते-बसते हैं
जिस दिन टूट-के बिखरेंगे, मिटटी में ही मिल जायेंगे ।
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फूलों में जबां तुम हो, खुशबू पे फिदा हम हैं
अकेले तुम तो क्या तुम हो, अकेले हम तो क्या हम हैं।
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हमें परवाह नही कि सितारे आसमां मे हों
हम तो देखते हैं आसमां ,सुकूं के लिये ।
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हमारी दोस्ती, ‘खुदा’ बन जाए है इच्छा
अब खुशबू अमन की, ‘खुदा’ ही बाँट सकता है ।
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तेरी मासुमीयत की दास्तां, कितनी सुहानी है
दिलों के कत्ल कर के भी, बडे बेखौफ बैठे हो ।
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दुश्मनी का अब, वक्त नही है
अमन के रास्ते मे, काँटे बहुत हैं।
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अभी भी वक्त है यारा, पलट के देख ले हमको
खुदा जाने, फिर कभी मौका न आयेगा ।
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कभी तुम रोज मिलते हो, कभी मिलते नहीं यारा
तुम्हारी ये अदाएँ भी, क्या कातिल अदाएँ हैं।
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छोड दूँ मैं मैकदा, क्यों सोचते हो
कौन है बाहर खडा, जो थाम लेगा।
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क्यूँ खफा हो, अब वफा की आस में
हम बावफा से, बेवफा अब हो गये हैं।
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तू तन्हा क्यों समझता है खुद को ‘उदय’
हम जानते हैं कारवाँ तेरे साथ चलता है।
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रोज आते हो, चले जाते हो मुझको देखकर
क्या तमन्ना है जहन में, क्यूँ बयां करते नहीं।
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तुम्हे फुर्सत-ही-फुर्सत है, ‘आदाब-ए-मोहब्बत’ की
हमें फुर्सत नहीं यारा, ‘सलाम-ए-मोहब्बत’ की ।
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कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।
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हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं।
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पीछे पलट के देखने की फुर्सत कहाँ हमें
कदम-दर-कदम हैं मंजिलें बडी ।

6 comments:

ZEAL said...

very nice.

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत अच्छी रचना --सुन्दर सार्थक रचना ..अच्छी पोस्ट है.. .. आज चर्चामंच पर आपकी पोस्ट है...आपका धन्यवाद ...मकर संक्रांति पर हार्दिक बधाई

http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_14.html

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर रचना . लोहड़ी और मकर संक्रांति की शुभकामनायें

Kailash Sharma said...

bahut sundar aur saarthak prastuti..lohdi aur makar sankranti ki shubh kaamanaayen

कविता रावत said...

कौन कहता है हिन्दू-मुस्लिम में फर्क है
नहीं है फर्क जन्मों में – नहीं है फर्क रक्तों में
फर्क है तो तेरी आँखों – तेरी बातों में फर्क है
न हिन्दू भी अलग है, न मुस्लिम भी अलग है।
....एक इंसान ही तो जो दूसरों में फर्क करता है, पर जब कोई उससे फर्क करता है तो वह दुखी होता है ..
वह सबकुछ जानकार भी कि ऊपर वाले ने तो सबको एक बनाया है, फर्क करना न जाने क्यों नहीं भूलता...
बहुत सार्थक प्रस्तुति ....
मकर सक्रांति कि बहुत बहुत हांर्दिक शुभकामनाएं