भाई साहब ...
आप ... मानो या न मानो
पर ... भ्रष्टाचार ... अपने आप में एक उम्मीद है
लंगड़े-लूले ... कांने-भेंगे ... लदे-लदाए ... भाई-भतीजे
आड़े-तिरछे ... अपटे-चपटे ... छोटे-मोटे
निकम्मे ... नालायकों ... और कामचोरों ... के लिए
सचमुच ... भ्रष्टाचार
अपने आप में ... एक उम्मीद है
भ्रष्टाचार ... के भरोसे ... के दम पर
इनके लिए भी सुनहरे अवसर खुले हैं
आगे बढ़ने के लिए ... सांथ चलने के लिए
पास होने के लिए ... सिलेक्ट होने के लिए !
सोचो ... ज़रा गंभीर होकर ... सोचो
अगर ... सिर्फ ... अच्छे ... ईमानदार
लायक ... योग्य ... और समझदार ... लोग ही रहेंगे
सिलेक्ट होंगे ... काम करेंगे ... सिस्टम में ... फिर
इन महानुभावों का ... क्या करोगे !
जो अपने आप में ... मिशालें हैं
सरकते-खिसकते समाज की ... पिट्ठू संस्कृति की !
आखिर इन्हें भी तो ... आगे बढ़ना है
ये और बात है कि -
ये भ्रष्टाचाररूपी ... खेल के ... चतुर व चालाक
खिलाड़ी बन जाते हैं ... क्यों ... क्योंकि ... इन्हें
सिर्फ ... समझदारों व इमानदारों को ही
तो देनी होती है पटकनी ... और ये कौन-सी बड़ी बात है
इन्हें ... ज्यादा-से-ज्यादा ... करना क्या है
किसी की ... जी-हुजूरी ... चमचागिरी ... या फिर
चुगली-चांटी ... कांना-फूसी ... सिर्फ इतना ही
जिसमें ये ... अपने आप में माहिर हो ही जाते हैं
चलो जाने दो ... होता है ... होते रहता है
सिस्टम है ... और इस भ्रष्ट सिस्टम में
भ्रष्टाचार ... अपने आप में एक उम्मीद है !!
आप ... मानो या न मानो
पर ... भ्रष्टाचार ... अपने आप में एक उम्मीद है
लंगड़े-लूले ... कांने-भेंगे ... लदे-लदाए ... भाई-भतीजे
आड़े-तिरछे ... अपटे-चपटे ... छोटे-मोटे
निकम्मे ... नालायकों ... और कामचोरों ... के लिए
सचमुच ... भ्रष्टाचार
अपने आप में ... एक उम्मीद है
भ्रष्टाचार ... के भरोसे ... के दम पर
इनके लिए भी सुनहरे अवसर खुले हैं
आगे बढ़ने के लिए ... सांथ चलने के लिए
पास होने के लिए ... सिलेक्ट होने के लिए !
सोचो ... ज़रा गंभीर होकर ... सोचो
अगर ... सिर्फ ... अच्छे ... ईमानदार
लायक ... योग्य ... और समझदार ... लोग ही रहेंगे
सिलेक्ट होंगे ... काम करेंगे ... सिस्टम में ... फिर
इन महानुभावों का ... क्या करोगे !
जो अपने आप में ... मिशालें हैं
सरकते-खिसकते समाज की ... पिट्ठू संस्कृति की !
आखिर इन्हें भी तो ... आगे बढ़ना है
ये और बात है कि -
ये भ्रष्टाचाररूपी ... खेल के ... चतुर व चालाक
खिलाड़ी बन जाते हैं ... क्यों ... क्योंकि ... इन्हें
सिर्फ ... समझदारों व इमानदारों को ही
तो देनी होती है पटकनी ... और ये कौन-सी बड़ी बात है
इन्हें ... ज्यादा-से-ज्यादा ... करना क्या है
किसी की ... जी-हुजूरी ... चमचागिरी ... या फिर
चुगली-चांटी ... कांना-फूसी ... सिर्फ इतना ही
जिसमें ये ... अपने आप में माहिर हो ही जाते हैं
चलो जाने दो ... होता है ... होते रहता है
सिस्टम है ... और इस भ्रष्ट सिस्टम में
भ्रष्टाचार ... अपने आप में एक उम्मीद है !!
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