Sunday, June 12, 2011

सच ! अब मौत दे दो !!

मुझे पता है कि मैं
लोकतंत्र हूँ ! अमर हूँ
खुद--खुद, मर नहीं सकता
अमरत्व का वरदान है मुझे
पर, अब मैं और जीना
सच ! बिल्कुल जीना नहीं चाहता
क्या करूंगा, जी कर
मेरे ही अंग अब
सड़ने-गलने लगे हैं,
खुद--खुद
उन पर कीड़े, जन्मने लगे हैं
दिल, और धड़कनें मेरी
कंप-कंपाने लगी हैं
अब सोच-विचार भी मेरे
कल्लाने-झल्लाने लगे हैं
रूह का क्या ! जाने
कब से थर्रा रही है
भ्रष्ट, भ्रष्टतम, भ्रष्टाचार से
हुआ, बहुत शर्मसार हुआ
बस, मुझे तुम
सच ! अब मौत दे दो !!

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