Saturday, June 11, 2011

तर - बतर !

काली
घटाओं सी
घनी रात में
चलो आ गए
सुन
पुकार तेरी
हम
घने, घनघोर
बादलों की तरह !

बरसते रहे
रुक रुक कर
थम थम कर
रात भर
करते रहे, तुम्हें
तर - बतर
रिमझिम-रिमझिम
बारिश की तरह !

ठहरे
फिर उमड़े
कभी
बादलों सी
गड़-गड़ाहट की तरह
कभी
कौंधती
बिजली की तरह !

तुम्हें
भिगाते भी रहे
खुद
भीगते भी रहे
रात भर
होते रहे 
तर - बतर
रिमझिम - रिमझिम
बारिश की तरह !!

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