Saturday, January 29, 2011

मौन !

क्या मैं मौन नहीं रह सकता
रह सकता हूं, पर क्यों विचलित हूं
हां ये सच है, मौन भी एक अदभुत शक्ति है
पर इस शक्ति को, मैं जानूंगा कैसे
निश्चय ही मौन रहकर
फ़िर क्यों व्याकुल हूं !

क्या कुछ पल भावों को, संवेदनाओं को
एहसासों को, अभिव्यक्तियों को
मौन रहकर महसूस नहीं कर सकता
संभव है पर एक बेचेनी है
मन में उपजे भावों को अभिव्यक्त करने की
पर मैं उन उपज रहे भावों को भी
स्वयं महसूस कर रहा हूं
क्या मैं एक शक्ति को महसूस करने
जानने का प्रयास कर रहा हूं !

शायद हां, मैं आपके अभिव्यक्त भावों को
पढकर, मन में रखकर
मनन कर रहा हूं, और अपनी अभिव्यक्ति से
जो मेरे भीतर है
समझने व समझाने का प्रयास कर रहा हूं
ये सच है मैं आपकी चार पंक्तियों को पढकर
मनन कर रहा हूं
और यह भी चिंतन में है मेरे
कि आप को मेरी अभिव्यक्ति का इंतजार है
आप व्याकुल हो मेरी अभिव्यक्ति के लिये !

मैंने प्रतिक्रिया, क्यों जाहिर नहीं की
मैं क्यों खामोश हो गया हूं
पर मेरे अंदर की खामोशी
एक सन्नाटे की तरह है
जो मुझे झकझोर रही है
उद्धेलित कर रही है, उमड रही है
मेरे अंदर ही अंदर
जिसे आप न देख सकते
और न ही महसूस कर सकते हो
क्यों, क्योंकि वह मेरे अंदर है
मेरे मन में है, मौन है !

1 comment:

निर्मला कपिला said...

ाच्छा लगता है कभी खुद का खुद के पास लौट आना जो केवल मौन मे ही किया जा सकता है। मौन की कशमक्श सुन्दर शब्दों मे। बधाई।