Thursday, April 14, 2011

अंधकार !

चंहू ओर
तुम नजर उठाओ
देखो
आंगन, गलियां, बस्ती
सारे जग में
काली रातें, घोर अन्धेरा
और कहीं
कुछ दिखता है क्या ?
मत फूंको
तुम दीपक को
बहुत है फैला
अंधकार
जलने दो, जल जाने दो !!

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय श्याम कोरी 'उदय' जी
नमस्कार !
कोमल भावों की शानदार कविता ने मन मोह लिया.
बहुत सुन्दर कविता..........दिल को आनन्दित करती हुई पंक्तियाँ!
आप से अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है बहुत सुंदर