भ्रष्टाचार ने लोकतंत्ररूपी ढाँचे को दीमक की तरह अपनी चपेट में ले लिया है, यह कहना आश्चर्यजनक नहीं होगा कि वर्त्तमान में लोकतंत्र के सभी धड़े भ्रष्टाचार की चपेट में हैं, लोकतंत्ररूपी ढाँचे का एक धडा 'न्यायपालिका' जिससे यह आम अपेक्षा रहती है कि यह धडा असामान्य हालात में भी निष्पक्ष रूप से कार्य संपादित करेगा किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि विगत कुछेक वर्षों से न्यायपालिका भी भ्रष्टाचार से अछूती नहीं रही है । न्यायपालिका जिसे न्याय का मंदिर कहा जाता है जहां अन्याय, दुर्भावनाएं, पक्षपात, भाई-भतीजावाद जैसे कृत्यों की अपेक्षाएं एक तरह से वर्जित हैं, किन्तु भ्रष्टाचाररूपी कीड़े ने इन समस्त वर्जनाओं को भी धवस्त कर दिया है, न्याय के मंदिर में भ्रष्टाचार ने जिस गति से प्रवेश व विस्तार किया है वह अपने आप में आश्चर्यजनक ही कहा जा सकता है । वर्त्तमान में भ्रष्टाचार की चपेट में न सिर्फ निचले स्तर की न्यायपालिकाएं वरन उच्च न्यायपालिकाएं भी अछूती नहीं कही जा सकती । लोकतंत्र के अति महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ 'न्यायापालिका' में समय समय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं सिर्फ आरोप ही नहीं लगते रहे वरन भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को समय समय पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही स्वरूप सेवा से निवृत भी किया जाता रहा है । सवाल यह नहीं है कि भ्रष्टाचार के आरोप लगना और भ्रष्टाचारियों को सेवा से निवृत कर देना या फिर भ्रष्टाचारियों को दंडात्मक कार्यवाही वतौर वर्त्तमान पद से रिवर्ट कर देना समाधानात्मक कार्यवाही है, वरन सवाल यह है कि न्याय के मंदिर में भ्रष्टाचार की जड़ें क्यों व कैसे फल-फूल रही हैं ।
न्यायपालिकाओं में भ्रष्टाचार की घुसपैठ अचंभित कर देने वाली अर्थात आश्चर्यजनक नहीं कही जा सकती, क्योंकि जब सारे के सारे लोकतंत्र में भ्रष्टाचार रूपी दानव विशालकाय रूप ले रहा हो तब लोकतंत्र का कोई भी एक धडा उससे अछूता कैसे रह सकता है । न्यायपालिकाओं में भ्रष्टाचार की घुसपैठ सामान्य व सहज कतई नहीं कही जा सकती, तात्पर्य यह है कि न्यायपालिकाओं में भ्रष्टाचार रूपी कीड़े ने सीधे दरवाजे से प्रवेश न करते हुए संभवत: दांय-बांय के रास्ते से प्रवेश करने का प्रयास किया है, कहने का तात्पर्य यह है कहीं न कहीं नियुक्तियां व पदस्थापनाएं इस भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार मानी जा सकती हैं । लोकतंत्र के अति महत्वपूर्ण स्तम्भ न्यायपालिका में भ्रष्टाचार अत्यंत चिंतनीय व दुर्भाग्यपूर्ण है किन्तु इस अंग में भ्रष्टाचार के फैलाव के लिए न्यायपालिका को प्रत्यक्ष रूप से उतना जिम्मेदार नहीं माना जा सकता जितना कि वर्त्तमान सत्तारूढ़ राजनैतिक सिस्टम को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार माना जाए, उसका कारण यह है कि न्यायपालिका के महत्वपूर्ण व प्रभावशाली पदों पर नियुक्तियां व पदस्थापनाएं सत्तारूढ़ राजनैतिक व्यवस्था के मंशा के अनुकूल ही होती रही हैं अत: यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि न्यायपालिकाओं में वर्त्तमान समय में भ्रष्टाचार के लिए सत्तारूढ़ राजनैतिक व्यवस्थाएं कहीं न कहीं अधिक जिम्मेदार मानी जा सकती हैं ।
लोकतंत्र रूपी ढाँचे के महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका में भ्रष्टाचार अहम् व गंभीर मसला है अत: इस चर्चा के महत्वपूर्ण मुद्दे पर आते हैं असल मुद्दा यह है की वर्त्तमान में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उद्देश्य से 'जन लोकपाल बिल' पर अहम् चर्चा चल रही है तथा इसी चर्चा के क्रम में तरह तरह के विचार सुनने व पढ़ने में आ रहे हैं इसी क्रम में न्यायपालिका में तथाकथित रूप से व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी अहम् चर्चा चल रही है कुछेक विद्धानों का मत है कि न्यायपालिका के सर्वोच्च पदों को इस बिल से पृथक रखा जाए तो कुछेक विद्धान इन पदों को भी जन लोकपाल के दायरे में रखने के पक्षधर हैं । यहाँ पर मेरा मानना यह है कि जब तक न्यायपालिका के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों व पदास्थापनाओं में राजनैतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश रहेगी तब तक भ्रष्ट आचरण की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, यह दुर्भाग्य जनक स्थिति न सिर्फ न्यायपालिका वरन देश के किसी भी अन्य उच्च पदस्थ पद पर नियुक्तियाँ व पदस्थापनाएं जिनमें राजनैतिक हस्तक्षेप व प्रभाव रहेगा वहां गुंजाइश बनी रहेगी । अत: यह अत्यंत आवश्यक होगा कि न सिर्फ कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका वरन देश में संचालित समस्त आयोगों को भी जन लोकपाल के दायरे में रखा जाना जनहित में आवश्यक व महत्वपूर्ण होगा ।
न्यायपालिकाओं में भ्रष्टाचार की घुसपैठ अचंभित कर देने वाली अर्थात आश्चर्यजनक नहीं कही जा सकती, क्योंकि जब सारे के सारे लोकतंत्र में भ्रष्टाचार रूपी दानव विशालकाय रूप ले रहा हो तब लोकतंत्र का कोई भी एक धडा उससे अछूता कैसे रह सकता है । न्यायपालिकाओं में भ्रष्टाचार की घुसपैठ सामान्य व सहज कतई नहीं कही जा सकती, तात्पर्य यह है कि न्यायपालिकाओं में भ्रष्टाचार रूपी कीड़े ने सीधे दरवाजे से प्रवेश न करते हुए संभवत: दांय-बांय के रास्ते से प्रवेश करने का प्रयास किया है, कहने का तात्पर्य यह है कहीं न कहीं नियुक्तियां व पदस्थापनाएं इस भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार मानी जा सकती हैं । लोकतंत्र के अति महत्वपूर्ण स्तम्भ न्यायपालिका में भ्रष्टाचार अत्यंत चिंतनीय व दुर्भाग्यपूर्ण है किन्तु इस अंग में भ्रष्टाचार के फैलाव के लिए न्यायपालिका को प्रत्यक्ष रूप से उतना जिम्मेदार नहीं माना जा सकता जितना कि वर्त्तमान सत्तारूढ़ राजनैतिक सिस्टम को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार माना जाए, उसका कारण यह है कि न्यायपालिका के महत्वपूर्ण व प्रभावशाली पदों पर नियुक्तियां व पदस्थापनाएं सत्तारूढ़ राजनैतिक व्यवस्था के मंशा के अनुकूल ही होती रही हैं अत: यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि न्यायपालिकाओं में वर्त्तमान समय में भ्रष्टाचार के लिए सत्तारूढ़ राजनैतिक व्यवस्थाएं कहीं न कहीं अधिक जिम्मेदार मानी जा सकती हैं ।
लोकतंत्र रूपी ढाँचे के महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका में भ्रष्टाचार अहम् व गंभीर मसला है अत: इस चर्चा के महत्वपूर्ण मुद्दे पर आते हैं असल मुद्दा यह है की वर्त्तमान में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उद्देश्य से 'जन लोकपाल बिल' पर अहम् चर्चा चल रही है तथा इसी चर्चा के क्रम में तरह तरह के विचार सुनने व पढ़ने में आ रहे हैं इसी क्रम में न्यायपालिका में तथाकथित रूप से व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी अहम् चर्चा चल रही है कुछेक विद्धानों का मत है कि न्यायपालिका के सर्वोच्च पदों को इस बिल से पृथक रखा जाए तो कुछेक विद्धान इन पदों को भी जन लोकपाल के दायरे में रखने के पक्षधर हैं । यहाँ पर मेरा मानना यह है कि जब तक न्यायपालिका के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों व पदास्थापनाओं में राजनैतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश रहेगी तब तक भ्रष्ट आचरण की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, यह दुर्भाग्य जनक स्थिति न सिर्फ न्यायपालिका वरन देश के किसी भी अन्य उच्च पदस्थ पद पर नियुक्तियाँ व पदस्थापनाएं जिनमें राजनैतिक हस्तक्षेप व प्रभाव रहेगा वहां गुंजाइश बनी रहेगी । अत: यह अत्यंत आवश्यक होगा कि न सिर्फ कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका वरन देश में संचालित समस्त आयोगों को भी जन लोकपाल के दायरे में रखा जाना जनहित में आवश्यक व महत्वपूर्ण होगा ।
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