Thursday, April 28, 2011

ख़्वाबों की ओर !

पैर
जलते रहे
दर्द
बढ़ता रहा
फिर भी
हम, चलते रहे
कोई
कहता भी क्या
हम
सुनते भी क्या
सफ़र
चलता रहा
राहें, घटती रहीं
हम
चलते रहे
और, बढ़ते रहे
हमें
चलना ही था
आगे बढ़ना ही था
चलते रहे, चलते चले
कभी
सर्द रातें मिलीं
कभी
गर्म राहें मिलीं
हम
रुके नहीं
और, थके नहीं
चलते रहे, चलते चले
कदम दर कदम
मंजिलों
और, ख़्वाबों की ओर !!

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

CHALTE RAHO BAS CHALE RAHO

Unknown said...

चलना ही तो जीवन है.
मैंने भी इसी विषय में कुछ लिखा है.

दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...