Monday, August 29, 2011

जद्दो-जहद

मोहब्बत में, वादों में, सच्चाई में
दिल, दिमाग को, आपस में जद्दो-जहद करते देखा है !

जिन्दगी में, जिन्दगी से, जिन्दगी को
रूठते-मनाते, रोते-हंसते, पल-पल आगे बढ़ते देखा है !

सत्ता के गलियारों से साहित्यिक चौपालों तक
छल, कपट, प्रपंचरूपी मुखौटों को आगे बढ़ते देखा है !

नहीं था रंज, हार-जीत का हमें
भेद-भाव के बीच भी, इरादों को आगे बढ़ते देखा है !

तंग, मुश्किल, परेशां, घड़ी में भी
हमने खुद को, कदम-दर-कदम आगे बढ़ते देखा है !!

1 comment:

Suresh kumar said...

जिन्दगी में, जिन्दगी से, जिन्दगी को
रूठते-मनाते, रोते-हंसते, पल-पल आगे बढ़ते देखा है !
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ....