Wednesday, May 11, 2011

सागर !

रोज रचूं मैं
रोज गढ़ूं मैं
छोटे-मोटे, शब्दों से
कांट - छांट कर
समेट, सहेज कर
छोटी-मोटी, रचनाएं !
रीत न जाऊं
डर है, मुझको
रोज रोज
बूँद बूँद, झर जाने से
हूँ मैं सागर
एक छोटा-सा
शब्दों के संसार का !!

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